इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष: इतिहास

इजरायल और फिलिस्तीन के बीच का संघर्ष एक लंबा और जटिल विवाद है, जिसमें धर्म, राजनीति, भू-संपदा और राष्ट्रीयता के मुद्दे शामिल हैं। इस संघर्ष की जड़ें 19वीं शताब्दी में जियोनिस्ट आंदोलन के साथ जुड़ी हैं, जब यहूदी लोगों ने अपने पूर्वजों की पवित्र भूमि पर एक राष्ट्र की स्थापना का लक्ष्य बनाया। इस भूमि को फिलिस्तीन के नाम से जाना जाता था, जहां अरब और इस्लामी आबादी रहती थी। इस भूमि का नियंत्रण ओटोमन साम्राज्य के हाथ में था, जो प्रथम विश्व युद्ध में हार कर टुकड़े-टुकड़े हो गया।
बेलफोर घोषणा और साइक्स-पिको समझौता (इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष: इतिहास)
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, ब्रिटेन ने यहूदियों को फिलिस्तीन में एक राष्ट्रीय अधिकार का वादा किया, जिसे बेलफोर घोषणा के रूप में जाना जाता है। इस घोषणा का उद्देश्य यहूदियों का समर्थन प्राप्त करना और ओटोमन साम्राज्य के खिलाफ लड़ने वाले अरबों को शांत रखना था। लेकिन ब्रिटेन ने चुपके से फ्रांस और रूस के साथ एक गुप्त समझौता किया, जिसे साइक्स-पिको समझौता कहा जाता है। इस समझौते के तहत, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस ने पूरे मध्य पूर्व को अपने बीच में बांट लिया था। ब्रिटेन ने फिलिस्तीन, इराक और जॉर्डन को अपने हिस्से में रखा था। फ्रांस ने सीरिया और लेबनान को प्राप्त किया था। रूस ने तुर्की का कुछ हिस्सा लिया था। इस प्रकार, ब्रिटेन ने एक ही समय में दो विरोधी वादे किए, जो बाद में विवाद का कारण बने।

ब्रिटिश शासन और आगंतुकों का आगमन
प्रथम विश्व युद्ध के बाद, ब्रिटेन ने फिलिस्तीन पर अपना शासन जमाया, जिसे ब्रिटिश मंडेट के रूप में जाना जाता है। ब्रिटेन ने यहूदियों और अरबों के बीच एक समाधान ढूंढने का प्रयास किया, लेकिन दोनों पक्षों के बीच तनाव बढ़ता गया। यहूदियों का फिलिस्तीन में आगमन बढ़ता गया, खासकर नाजी जर्मनी में उनके ऊपर होने वाले अत्याचार के बाद। यहूदियों ने अपने आप को सुरक्षित करने और अपना राष्ट्र बनाने के लिए आर्म्ड ग्रुप्स बनाए, जैसे हगाना, इरगुन और स्टर्न गैंग। इन ग्रुप्स ने ब्रिटिश और अरब लक्ष्यों पर हमले किए, जिनमें सबसे प्रसिद्ध है 1946 में किया गया किंग डेविड होटल का धमाका, जिसमें 91 लोग मारे गए। अरब लोगों ने भी यहूदियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन, हड़ताल और हिंसा का रास्ता अपनाया। ब्रिटेन को इस स्थिति को संभालने में असमर्थ होकर, ब्रिटेन ने 1947 में अपनी मंडेट को समाप्त करने का फैसला किया और इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र के हवाले कर दिया।
संयुक्त राष्ट्र का बटवारा प्रस्ताव
संयुक्त राष्ट्र ने एक विशेष समिति का गठन किया, जिसे यूनाइटेड नेशन्स स्पेशल कमेटी ऑन पेलेस्टाइन (यूएनएससीओपी) कहा जाता है। इस समिती ने फिलिस्तीन को दो राष्ट्रों में बांटने का प्रस्ताव रखा, एक यहूदी और एक अरब। इस प्रस्ताव के अनुसार, यहूदी राष्ट्र को 56.47% भूमि मिलनी थी, जिसमें 558,000 यहूदी और 405,000 अरब रहते थे। अरब राष्ट्र को 43.53% भूमि मिलनी थी, जिसमें 804,000 अरब और 10,000 यहूदी रहते थे। येरूशलेम को एक अंतर्राष्ट्रीय शहर बनाया जाना था, जिसका प्रशासन संयुक्त राष्ट्र के हाथ में होना था।

इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 29 नवंबर 1947 को 33 के खिलाफ 13 के साथ मंजूरी दी। यहूदी लोगों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया, लेकिन अरब लोगों ने इसे अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यह उनके राष्ट्रीय अधिकारों का हनन है और उन्हें अपनी भूमि का न्यायोचित हिस्सा नहीं मिला है। इसके बाद, फिलिस्तीन में यहूदी और अरब ग्रुपों के बीच हिंसा फैल गई, जिसमें हजारों लोगों की मौत हुई।
इजरायल का घोषणा और पहला अरब-इजरायल युद्ध
1948 में, ब्रिटेन ने फिलिस्तीन से अपनी सेना वापस ले ली और अपनी मंडेट को समाप्त कर दिया। 14 मई 1948 को, यहूदी नेता डेविड बेन-गुरियन ने इजरायल का घोषणा किया, जिसे संयुक्त राष्ट्र के बटवारा प्रस्ताव के अनुसार बनाया गया था। इस घोषणा के तुरंत बाद, अरब देशों ने इजरायल पर आक्रमण कर दिया, जिसे पहला अरब-इजरायल युद्ध कहा जाता है। इस युद्ध में, इजरायल ने अपने अस्तित्व की रक्षा की और अपनी भूमि का कुछ हिस्सा और अधिक हासिल कर लिया। इस युद्ध के नतीजे में, लगभग 7.5 लाख फिलिस्तीनी शरणार्थी बन गए, जिन्हें अपने घरों से भगाया गया या छोड़कर भागे। इन शरणार्थियों का मुद्दा आज भी एक विवादित मुद्दा है, जिसका समाधान नहीं निकला है।
आगे के युद्ध और शांति प्रयास
पहले अरब-इजरायल युद्ध के बाद, इजरायल और उसके पड़ोसी देशों के बीच कई युद्ध और संघर्ष हुए, जिनमें सबसे प्रमुख हैं:
- 1956 में, इजरायल, ब्रिटेन और फ्रांस ने मिस्र पर हमला किया, जिसे स्वेज आइसिस क्राइसिस कहा जाता है। इस हमले का कारण मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासर ने स्वेज नहर को राष्ट्रीयकरण करना था।इस हमले का विरोध अमेरिका और सोवियत संघ ने किया, जिसके कारण इजरायल, ब्रिटेन और फ्रांस को अपनी सेना वापस लेनी पड़ी।
- 1967 में, इजरायल ने मिस्र, जॉर्डन और सीरिया पर एक आकस्मिक हमला किया, जिसे छह दिन का युद्ध कहा जाता है। इस हमले में, इजरायल ने सिनाई उपद्वीप, गाजा पट्टी, पश्चिमी किनारा और गोलान हाइट्स को अपने अधीन कर लिया। इस युद्ध के बाद, इजरायल का क्षेत्रफल तीन गुना हो गया।
- 1973 में, मिस्र और सीरिया ने इजरायल पर एक समन्वित हमला किया, जिसे योम किप्पुर युद्ध कहा जाता है। इस हमले का उद्देश्य 1967 के युद्ध में खोई हुई भूमि को वापस लेना था। इस हमले में, मिस्र और सीरिया ने इजरायल को आश्चर्यचकित कर दिया, लेकिन इजरायल ने अपनी सेना को पुनर्गठित करके अपनी जीत हासिल की।
इन युद्धों के बाद, इजरायल और अरब देशों के बीच शांति प्रयास शुरू हुए, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं:
- 1978 में, अमेरिका के राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने इजरायल के प्रधानमंत्री मेनाहेम बेगिन और मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात को कैंप डेविड में बुलाया, जहां उन्होंने एक ऐतिहासिक शांति समझौता किया। इस समझौते के तहत, इजरायल ने मिस्र को सिनाई उपद्वीप वापस दिया और मिस्र ने इजरायल को एक वैध राष्ट्र माना। यह पहला अरब देश था, जिसने इजरायल को मान्यता दी।
- 1993 में, अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने इजरायल के प्रधानमंत्री यित्जाक रबिन और फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) के नेता यासिर आरफात को वाशिंगटन में बुलाया, जहां उन्होंने एक शांति प्रक्रिया की शुरुआत की, जिसे ओस्लो समझौता कहा जाता है। इस समझौते के तहत, इजरायल ने फिलिस्तीनियों को गाजा पट्टी और पश्चिमी किनारे पर आत्म-शासन का अधिकार दिया और पीएलओ ने इजरायल को एक वैध राष्ट्र माना। इस समझौते को दोनों पक्षों के लोगों ने उत्साह से स्वागत किया, लेकिन कुछ अतिरुद्धिवादी ग्रुपों ने इसे अस्वीकार कर दिया।

वर्तमान स्थिति:
ओस्लो समझौते के बाद, इजरायल और फिलिस्तीन के बीच कई बार शांति वार्ता हुई, लेकिन कोई स्थायी समाधान नहीं निकला। दोनों पक्षों के बीच कई मुद्दे अनसुलझे हैं, जैसे येरूशलेम का दर्जा, फिलिस्तीनी शरणार्थियों का हक, इजरायली उपनिवेशों का मुद्दा, फिलिस्तीनी राज्य की सीमाएं और सुरक्षा का प्रश्न। इन मुद्दों को हल करने के लिए अमेरिका, यूरोपीय संघ, रूस और संयुक्त राष्ट्र ने एक चार-पक्षीय समूह बनाया, जिसे शांति प्रक्रिया के लिए अंतर्राष्ट्रीय समन्वयक (क्वार्टेट) कहा जाता है।इस समूह ने 2003 में एक रोडमैप जारी किया, जिसमें दोनों पक्षों को कुछ कदम उठाने के लिए कहा गया, जैसे हिंसा को रोकना, उपनिवेशों का निर्माण बंद करना, शरणार्थियों का मुद्दा हल करना, और अंत में एक दो-राष्ट्रीय समाधान पर पहुंचना। लेकिन इस रोडमैप को लागू करने में असफलता हुई, क्योंकि दोनों पक्षों के बीच विश्वास की कमी और अतिरुद्धिवादी तत्वों का प्रभाव था।
2006 में, गाजा पट्टी में एक आतंकवादी संगठन हमास ने चुनाव जीता, जिसने इजरायल को एक वैध राष्ट्र मानने से इनकार किया। इसके बाद, गाजा पट्टी में फिलिस्तीनी राजनीतिक दलों के बीच आंतरिक लड़ाई हुई, जिसमें हमास ने फतह को हराया। इससे फिलिस्तीनी क्षेत्र में दो अलग-अलग शासन बन गए, एक गाजा पट्टी में हमास का और एक पश्चिमी किनारे में फतह का। इजरायल ने गाजा पट्टी पर एक नाकाबंदी लगा दी, जिससे वहां के लोगों को बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा।
2008-2009 में, 2012 में और 2014 में, इजरायल और हमास के बीच गाजा पट्टी में तीन बड़े युद्ध हुए, जिनमें हजारों लोगों की मौत हुई और बहुत सारी तबाही हुई। इन युद्धों के बाद, दोनों पक्षों ने अस्थायी शांति का समझौता किया, लेकिन कोई स्थायी समाधान नहीं निकला।
2020 में, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक शांति योजना पेश की, जिसे शत-वर्षीय समझौता कहा जाता है। इस योजना के तहत, इजरायल को अपने उपनिवेशों को रखने, येरूशलेम को अपनी राजधानी बनाने और जॉर्डन नदी के पूर्वी किनारे पर अपनी सुरक्षा को बनाए रखने का अधिकार मिला। फिलिस्तीन को एक स्वायत्त राज्य का दर्जा मिला, लेकिन उसकी सीमाएं और शर्तें इजरायल के अनुसार निर्धारित की गईं। इस योजना को इजरायल ने स्वागत किया, लेकिन फिलिस्तीन ने इसे एक एकतरफा और अन्यायपूर्ण योजना बताकर खारिज कर दिया।
2021 में, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कुछ अरब देशों के साथ शांति समझौते किए, जिनमें यूएई, बहरीन, सूडान और मोरक्को शामिल हैं। इन समझौतों को अब्राहम समझौते के नाम से जाना जाता है। इन समझौतों का उद्देश्य इजरायल और अरब देशों के बीच के राजनयिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को सुधारना है। इन समझौतों को अमेरिका ने समर्थन और मध्यस्थता की है। लेकिन इन समझौतों को फिलिस्तीन और इरान ने विरोध किया है। उन्होंने कहा कि ये समझौते फिलिस्तीनी मुद्दे को अनदेखा करते हैं और इजरायल को अपनी अतिक्रमणात्मक नीतियों को जारी रखने का लाइसेंस देते हैं।
निष्कर्ष:
इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष एक ऐसा संघर्ष है, जिसमें दोनों पक्षों के लिए अपनी अस्तित्व की लड़ाई है। इस संघर्ष में, दोनों पक्षों को अपने इतिहास, संस्कृति और धर्म का गहरा सम्बन्ध है। इस संघर्ष को हल करने के लिए, दोनों पक्षों को एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना होगा, और एक आपसी सहमति के आधार पर एक दो-राष्ट्रीय समाधान को स्वीकार करना होगा। इसके लिए, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का एक सकारात्मक और निष्पक्ष भूमिका निभाना होगा, जो दोनों पक्षों को शांति और सुरक्षा की ओर ले जाए।
सामान्य प्रश्न(FAQ):
- Q: इजरायल और फिलिस्तीन के बीच का संघर्ष कब शुरू हुआ?
- A: इजरायल और फिलिस्तीन के बीच का संघर्ष 19वीं शताब्दी में जियोनिस्ट आंदोलन के साथ शुरू हुआ, जब यहूदी लोगों ने अपने पूर्वजों की पवित्र भूमि पर एक राष्ट्र की स्थापना का लक्ष्य बनाया।
- Q: इजरायल और फिलिस्तीन के बीच के मुख्य मुद्दे कौन-कौन से हैं?
- A: इजरायल और फिलिस्तीन के बीच के मुख्य मुद्दे हैं: येरूशलेम का दर्जा, फिलिस्तीनी शरणार्थियों का हक, इजरायली उपनिवेशों का मुद्दा, फिलिस्तीनी राज्य की सीमाएं और सुरक्षा का प्रश्न।
- Q: इजरायल और फिलिस्तीन के बीच का संघर्ष कैसे हल हो सकता है?
इजरायल और फिलिस्तीन के बीच का संघर्ष को हल करने के लिए, दोनों पक्षों को एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना होगा, और एक आपसी सहमति के आधार पर एक दो-राष्ट्रीय समाधान को स्वीकार करना होगा। इसके लिए, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का एक सकारात्मक और निष्पक्ष भूमिका निभाना होगा, जो दोनों पक्षों को शांति और सुरक्षा की ओर ले जाए।
इस लेख का उद्देश्य इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के इतिहास, कारण और हालात को समझने में मदद करना है। इस लेख में दी गई राय या विश्लेषण लेखक की निजी राय नहीं हैं, बल्कि विभिन्न स्रोतों से लिए गए हैं। इस लेख को किसी भी राजनीतिक, धार्मिक या सामाजिक दल का प्रतिनिधित्व नहीं करने का प्रयास किया गया है।