मैरिटल रेप अपराध नहीं – केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किया हलफनामा

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Marital Rape: मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने को लेकर केंद्र सरकार (center government) ने गुरुवार 3 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट (supreme court)में एक हलफनामा दायर किया। इसमें केंद्र की मोदी सरकार (modi government) ने भारत में मैरिटल रेप (Marital Rape) को अपराध घोषित करने की मांग करने वाली याचिकाओं का विरोध किया।
केंद्र का मानना है कि यौन संबंध पति-पत्नी के बीच संबंधों के कई पहलुओं में से एक है, जिस पर उनके विवाह की नींव टिकी होती है। ऐसे में मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसके लिए कई अन्य सजाएं भारतीय कानून में मौजूद हैं।

Marital Rape: कानूनी से ज्यादा ये मामला सामाजिक है

केंद्र सरकार(center government) ने अपने हलफनामें में कहा कि यह मुद्दा कानूनी से अधिक सामाजिक है। जिसका समाज पर सीधा असर पड़ता है। केंद्र सरकार की तरफ से ये भी तर्क दिया गया कि अगर मैरिटल रेप(Marital Rape) को अपराध घोषित करना सुप्रीम कोर्ट(supreme court) के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है।

केंद्र की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि लगातार बदलते सामाजिक एवं पारिवारिक ढांचे में संशोधित प्रावधानों के दुरुपयोग का भारी खतरा है, क्योंकि किसी व्यक्ति के लिए यह साबित करना काफी मुश्किल और चुनौतीपूर्ण होगा कि संबंध के लिए सहमति थी या नहीं थी। यानि ये एक जटिल मामला बन सकता है।

अमूमन, जब शादी होती है तो जीवनसाथी से उचित तरीके से यौन संबंध स्थापित करने की अपेक्षा की जाती है। लेकिन ऐसी अपेक्षाएं पति को अपनी पत्नी को उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने का अधिकार नहीं देती हैं। केंद्र का कहना था कि बलात्कार विरोधी कानूनों के तहत किसी व्यक्ति को ऐसे कृत्य के लिए दंडित करना असंगत हो सकता है। ऐसे में इस पर विचार करना आवश्यक है।

सरकार ने कहा कि संसद ने विवाहित महिला की सहमति को सुरक्षित रखने के लिए कई उपाय बनाए हैं। इन उपायों के तहत विवाहित महिलाओं के साथ क्रूरता करने पर दंड का प्रावधान है। घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 कानून है, जो विवाहित महिलाओं की मदद करने के साथ ही उनका बचाव करता है। 

गौरतलब है कि कर्नाटक हाईकोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट के दो फैसलों के खिलाफ मैरिटल रेप को क्रिमिनलाइज करने की मांग का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। इसके अलावा कई और जनहित याचिकाएं दायर की गई थीं। भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 63 (बलात्कार) के अपवाद 2 के मुताबिक मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना गया है। हालांकि इस मामले पर केंद्र सरकार को भी जवाब दाखिल करना है। केंद्र का कहना है, कानूनों में बदलाव के लिए विचार-विमर्श की जरूरत है।
पहले वर्ष 2017 में, सरकार ने मैरिटल रेप को अपराध न मानने के कानूनी अपवाद को हटाने का विरोध किया था। सरकार का ये तर्क था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने से विवाह की संस्था अस्थिर हो जाएगी और इसका इस्तेमाल पत्नियों द्वारा अपने पतियों को सजा देने के लिए किया जाएगा।

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